हरिद्वार, भगवान शिव के विवाह के पुरोहित बने भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी द्वारा विवाह की दक्षिणा नहीं स्वीकार करने पर भगवान शिव के सामने गहन समस्या खडी हो गई।

अब पूजा अर्चना की दक्षिणा तो हर हाल दी जानी थी, अब भगवान् शिव के विवाह की दक्षिणा कौन ले तब भगवान शिव ने अपनी जांघ पर प्रहार कर साधूओं को उत्पन्न किया भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न साधूओं ने दक्षिणा ग्रह की और भगवान शिव की महिमा और विवाह गीत गाये और जंगम कहलाये।

श्वेत वस्त्रधारी,सिर पर मोर पंख और घंटियों के आकार के पीतल के कटोरी नुमा आभूषण जो कपड़े की पगड़ी के तीन छोर पर बंधे होते हैं, कानों में कर्णफूल और हाथों में घंटीधारी,कंधे पर भिक्षा की झोली, जंगम साधुओं को भगवान शिव ने खुश होकर मुकुट और नाग धारण करने को दिये, माता पार्वती ने कर्णफूल दिए, नंदी ने घंटी दी, विष्णु ने मोर मुकुट दिया, शिव महिमा का गान करते जंगम संत आपको केवल कुंभ मेलों में सन्यासी अखाड़ों में साधू-संतों से ही भिक्षा ग्रहण करते मिलेंगे।

प्रतिदिन सुबह एक बार भिक्षा से जीवन यापन करने वाले ये जंगम संत, एक दल में आठ से दस सदस्य होते हैं,देशभर में इन साधुओं की आबादी पांच से सात हज़ार के बीच है और सिर्फ जंगम साधु का बेटा ही जंगम साधु बन सकता है, जंगम साधुओं के अनुसार हर पीढ़ी में हर जंगम परिवार से एक सदस्य साधु बनता है, और ये क्रम लगातार जारी है।

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