रेल लाइन बिछाने से पहले,अंग्रेज अधिकारियों को करनी पड़ी थी काली पूजा

हरिद्वार, देवी भगवती की चर्चा किये बिना हरिद्वार की हर चर्चा अधूरी है, चैत्र नवरात्र की अष्टमी देवी भगवती दुर्गा की विशिष्ट तिथि है और हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी हैं मायादेवी और अधिष्ठाता हैं, भगवान शंकर हैं। शास्त्र कहते हैं कि चाहे कुंभ हो या हरिद्वार तीर्थ यात्रा, यदि हरिद्वार आकर मायादेवी माता मंदिर और दक्ष मंदिर के दर्शन नहीं किए तो तीर्थ यात्रा अधूरी रहेगी।

हरिद्वार अगर गंगा की नगरी है तो देवी शक्ति का मुख्य वास स्थल भी है,मध्य में मायादेवी,एक ओर पर्वत पर मंसा देवी और दूसरी ओर पर्वत पर चंडी देवी की भौतिक अवस्था अनायास एक त्रिभुज त्रिशूलाकार ले लेती है, शास्त्र कहते हैं कि उद्धर्व मुख त्रिशूल भग्वान शिव का प्रतीक है तो अधोमुख त्रिशूल देवी भगवती दुर्गा शक्ति का प्रतीक है।यूं भी दशमहाविद्या की प्रतीक देवी सती के पिता दक्ष की नगरी हरिद्वार जो देवी के भारत में स्थित सिद्ध पीठों का मूल है, जहां देवी सती के दग्ध शरीर को लेकर शिव ने तांडव किया और विष्णु के चक्र ने इक्यावन भागों में विखंडित किया ऐसे पौराणिक महत्व के स्थल हरिद्वार में मायादेवी माता मंदिर वो स्थल है जहां देवी सती की नाभि गिरी थी, हालांकि मायादेवी को सर्वांग सिद्ध पीठ भी कहा जाता है।


मान्यता है कि हरिद्वार मायादेवी माता के मंदिर में अराधना करने वालों की कामना अवश्य पूरी होती है।महादेवी मंदिर का प्रबंधन दत्तात्रेय का उपासक जूना अखाड़ा करता है, शास्त्र कहते हैं कि वर्तमान दक्ष मंदिर से लेकर मायादेवी मंदिर तक राजा दक्ष के यज्ञ स्थल का विस्तार था,इसे प्राचीन ग्रंथों ने मायापुरी कह कर भी सम्बोधित किया है।


कुंभ मेले जैसे विशाल मेले में श्रद्धालु अपने परिवार के कल्याण का लक्ष्य लेकर हरिद्वार में मंदिरों में भी देवी देवताओं के दर्शन करने पहुंचते हैं, यहां शिवालिक पर्वत शिखर पर मंसादेवी का मंदिर स्थित है जो सर्पराज्ञी कही जाती हैं, तीन मुख और पांच भुजाओं वाली देवी की मूर्ति आठ नागों के वाहन पर सवार हैं।

कहते हैं जहां मंसा देवी हों वहां चंडीदेवी का होना अनिवार्य होता है,नीलधारा के पार नील पर्वत पर चंडी देवी का मंदिर स्थित है जो सिद्धीदात्री कही जाती है, यहीं देवी ने शुम्भ निशुंभ का वध किया था।यहीं अंजनी देवी और पर्वत के नीचे महाकाली का मंदिर है जिसका सम्बन्ध आल्हा ऊदल से जोडा जाता है।इसके अलावा गौरीकुंड, सुरेश्वरी देवी, शीतला माता और रेलवे लाइन के ठीक उपर भीमगोड़ा क्षेत्र में स्थित काली मंदिर भी परम पूज्य है, कहा जाता है कि रेलवे लाईन बिछाने के दौरान यहां अंग्रेज अधिकारियों को देवी की आराधना करनी पड़ी थी तभी रेलवे लाईन का काम पूरा हो सका था।

Don't Miss

error: Content is protected !!