वैज्ञानिक संत स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद जी की षष्टम पुण्यतिथि पर मातृ सदन में श्रद्धांजलि कार्यक्रम और “नदी प्रवाह जीवन प्रवाह” विषय पर सेमिनार आयोजित हुआ।मातृ सदन परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती जी ने सानंद जी को पुष्पांजलि समर्पित करते हुए, अथर्ववेद और गीता केश्लोकों की वृहद विवेचना करते हुए स्पष्ट किया कि किस प्रकार नदियों के अविरल प्रवाह और जल चक्र की निरंतरता पृथ्वी पर मानव जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।आज भिन्न प्रकार के जलवायु आपदाओं से जूझ रही पृथ्वी और मानवता के बचाव का रास्ता विज्ञान में ही आता है।विज्ञान कहता है ले चेटेलियर सिद्धांत के अनुसार जल चक्र को अस्त व्यस्त करने से, नदियों के जल प्रवाह को अवरोधित करने से पूरी पृथ्वी के वायुमंडल में डिस्टर्बेंस आती है। यह स्पष्ट रूप से हमारे वेदों में लिखा है।ब्रह्मा जी की ३ आहुति : ब्रह्मा जी के यज्ञ अनुसार नदी लगातार बहती रहे, उसके साथ पवन, मछली और वायु भी साथ साथ बहते रहे।

इस विषय पर पिछले सप्ताह मातृ सदन द्वारा एक विस्तृत लेख और पत्र भी जारी किया गया है जिसे इंग्लिश, हिंदी और संस्कृत तीन भाषाओं में अनुवाद किया गया है।नदी सिंधु की पत्नी है। जिस प्रकार सीता हरण के बाद श्रीराम ने रामायण का युद्ध किया, उसी प्रकार नदी के जल को बांध में अवरोधित कर देने से समुद्र भी वैसा ही विनाश करेगा। इसलिए समुद्र में तूफान आदि बढ़ गए है।

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर रवि चोपड़ा जी ने साधन का प्रयोग तो करना ही है, ब्रह्मा जी का यज्ञ भी यही कहता है। पर प्रश्न है कि कितना करें। तो जीवन के लिए को जरूरी है वो ले सकता है पर खेल और मुनाफे के लिए नहीं।जीवन के लिए जल का प्रयोग कम होता है 4 पर्सेंट खेती गलत प्रकार से करते ही तो पानी अधिक लागत है पुरानी में कम लागत था  इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन me CO२ was २८० ppm  Now ४२० ppm हो गई है और धरती का तापमान भी उसी प्रकार बढ़ता जा रहा है।

हमने प्रकृति के eqm को जरूरत से ज्यादा हिला दिया है। स गाद को समुद्र के पास जाने से रोक दिया है। फरक्का बैराज के बाद सागर में गाद जानी बंद हो गई भारत के सुंदरबन के हिस्से mein zameen में टापू बन गए है छोटे साइज के और समुद्र aas paas ke mitti ko kha jaati hai। सारी गाद बांग्लादेश में चली जाती है तो वहां सब ठीक है टापू बड़े है।भारत में सारी मिट्टी नदी खा गई है, गांव के गांव नष्ट हो जाते है समुद्र के भीतर भी केमिकल इक्विलिब्रियम इस distuebed , that’s why समुद्री तूफानों के संख्या बढ़ गई है

ऋषि अपने ध्यान से पूरे ब्रह्मांड की जीवन लीला को समझ लेते हैं। लेकिन हम वैज्ञानिकों को प्रयोग करने होते है। सानंद जी कहते थे प्राचीन वैज्ञानिकों को ध्यान से भी शक्ति मिलती है, और प्रयोग भी करते थी गंगा जल औषधि है, सानंद जी ने ने प्रयोग किया वृक्ष धरती का आवरण है, वस्त्र है। पृथ्वी के आवरण को चोट पहुंचाने से वही हाल होगा जो द्रौपदी के चीर हरण से हुआ था जी महाभारत युद्ध और महा विनाश।

जल पुरुष डॉक्टर राजेंद्र सिंह जी ने कहा :Jab वैज्ञानिक प्रकृति के साथ गहरे रिश्ते में आता हैं तब वह ऋषि होता है। आज की शिक्षा हमें स्वार्थी और खुदगर्ज बनाती है। वेदों में इसको अविद्या कहा है।गंगा माई को कमाई का साधन बना दिया है।श्री गुरुदेव के वेदों से जो प्रमाणनित किया है सानंद जी वहीं करते थेसत्य नारायण शेट्टी, विशाखापत्तनम से जल बिरादरी के नेशनल convenor He wrote a letter to Modi on 50th day of Sanand ji with Pavan Kalyan।कार्यक्रम में देश भर के पर्यावरणविद्धों ने सानंद जी के बलिदान को याद करते हुए उनके सत्याग्रह और मांग को आगे बढ़ाया।

Don't Miss

error: Content is protected !!