रिपोर्ट : तसलीम कुरैशी
पिरान कलियर। नगर निकायों में इन दिनों एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है — बोर्ड की बैठकों से मीडिया को दूर रखा जा रहा है। यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर नगर निकायों को अपनी गतिविधियों को छिपाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या वाकई बोर्ड की बैठकों में कुछ ऐसा होता है, जो जनता से छुपाया जा रहा है?

सूत्रों के अनुसार, हाल ही में हुई कई बैठकों में मीडिया को न तो कोई पूर्व सूचना दी गई और न ही बाद में बैठक के निर्णय सार्वजनिक किए गए। इससे यह साफ संकेत मिलता है कि कहीं न कहीं पारदर्शिता की कमी है। जो भी कार्य प्रस्ताव बोर्ड में पारित किए जाते हैं, उनकी असली तस्वीर अक्सर ज़मीन पर कुछ और ही होती है।

अक्सर देखा गया है कि भारी-भरकम बजट पास तो किया जाता है, लेकिन वो काम या तो अधूरे रहते हैं या सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रह जाते हैं। इससे यह आशंका और मजबूत हो जाती है कि कहीं विकास के नाम पर घोटाले तो नहीं किए जा रहे?

जनता आमतौर पर मीडिया को ज़िम्मेदार मानकर चैन की नींद सो जाती है, लेकिन जब नगर निकाय ही मीडिया को सूचना नहीं देंगे तो मीडिया क्या रिपोर्ट करेगी? ऐसे में अब समय आ गया है कि जनता खुद जागरूक बने और सवाल पूछे — आखिर बोर्ड की बैठकें गुपचुप क्यों की जा रही हैं?

जब संसद और विधानसभा की कार्यवाहियाँ जनता के सामने लाई जाती हैं, तो फिर नगर निकायों को अपनी मीटिंग्स से परहेज़ क्यों है? क्या इनके पास छिपाने के लिए कुछ है?

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