निरंजनी अखाड़े में संत महापुरुषों के सानिध्य में स्वामी विवेकानंद गिरी बने महामंडलेश्वर, मधुरम सरल शिवा, श्री महंत

प्रयागराज, महाकुम्भ मे श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी मे आचार्य और अखाड़े के पंच संतो ने मिलकर अखाड़े की परंपरा का निर्वाह करते हुए मधुरम सरल शिवा(शिव शक्ति अखाडा)फतेहपुर कों श्री महंत , स्वामी विवेकानंद गिरी निवासी (बर्मा )का पट्टा अभिषेक कर उन्हें महामंडलेश्वर बनाया गया। निरंजनी अखाड़े की छावनी में संपन्न हुए पट्टाभिषेक समारोह में अखाड़ों के संत महापुरूषों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूर्ण विधि विधान से तिलक चादर प्रदान कर महामंडलेश्वर पद पर अभिषेक किया और संत महापुरुषों ने उन्हें आशीर्वाद देकर शुभकामनाएं दी।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि आज 30 जाती के लोगो कों साथ लेकर सनातन की सेवा कर रहे,मधुरम सरल शिवा(शिव शक्ति अखाडा)
फतेहपुर कों श्री महंत बनाया गया और स्वामी विवेकानंद गिरी का पट्टाभिषेक कर उन्हें महामंडलेश्वर बनाया गया है। उन्होंने कहा की देश को सांस्कृतिक व आध्यात्मिक रूप से एकजुट करने में संत महापुरूषों ने हमेशा अहम भूमिका निभायी है। निंरजनी अखाड़े के नवनियुक्त महामंडलेश्वर आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा धर्म रक्षा के लिए स्थापित अखाड़ा परंपरा को आगे बढ़ाने में युवा संत अपना अहम योगदान देंगे।

उन्होंने कहा कि यह पद उस संत कों मिलता जिन्होंने अपने जीवन में विशेष धार्मिक तप, साधना और समाज सेवा के कार्य किए हों। यह पद, उन संत,महंतो को दिया जाता है जो अपने अखाड़े या संप्रदाय का नेतृत्व करते हैं और जो अपने ज्ञान और योग्यता के कारण समुदाय में सम्मानित होते हैं।उन्होंने कहा कि महामंडलश्वर का मुख्य कर्तव्य अपने संप्रदाय के संत महापुरूषों और भक्तों का मार्गदर्शन करना है। वे उन्हें धार्मिक जीवन जीने, साधना और योग में सक्षम बनाते हैं।

आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशा नन्द गिरि ने कहा की जो संत महापुरुष महामंडलेश्वर बनते हैं उनका अखाड़े में एक विशेष पद और विशेष सम्मान होता है। उन्होंने कहा कि महामंडलश्वर के कर्तव्यों में अनेक धार्मिक, सामाजिक, और आध्यात्मिक जिम्मेदारियां शामिल होती हैं। यह कर्तव्य न केवल उनके व्यक्तिगत आचरण से जुड़े होते हैं, बल्कि समाज और संप्रदाय के प्रति उनके दायित्वों का भी हिस्सा होते हैं।

आनंद पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी ने कहा कि महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया में गुरु-शिष्य परंपरा का पालन किया जाता है। एक योग्य व्यक्ति को इस पद पर नियुक्ति देने के लिए अखाड़े के प्रमुख संतों और गुरुजनों की सहमति आवश्यक होती है। यह पद केवल उन संतों को दिया जाता है, जिनके पास गहरी धार्मिक शिक्षा, अनुभव और समाज के प्रति उनकी सेवा के प्रमाण होते हैं।

नव नियुक्त महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद गिरी ने कहा कि जो जिम्मेदारी मुझे संत महापुरुषों ने दी है उसका निर्वाह मे सच्ची निष्ठा से करूंगा। उन्होंने कहा कि सभी गुरुजन मेरे लिए परमात्मा का दूसरा रूप है। नवनियुक्त महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद गिरी ने सभी संत महापुरुषों के चरण छूकर आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर अखाड़ा सचिव श्री महंत रामरतन गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानन्द पुरी (अर्जी वाले हनुमान जी, उज्जैन ), महामंडलेश्वर स्वामी ललिता नंद गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी आदियोगी पुरी,महामंडलेश्वर स्वामी आनंदमई माता ,महंत दिनेश गिरी, महंत राज गिरी , महंत राधे गिरी,महंत भूपेन्द्र गिरी, महंत ओमकार गिरी,डॉ आदियानन्द गिरी आदि के संग अनेक संत महापुरुष उपस्थित रहे।

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