आज शाही स्नान के दिन हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड घाट पर स्नान के तीसरे क्रम में श्री महानिर्वाणी अखाड़ा पहुंचा।अखाड़े के पहुंचने से पहले घाटों की पूर्ण रूप से साफ सफाई करवाई गई महानिर्वाणी अखाड़ा शैव संप्रदाय का अखाड़ा है।इस अखाड़े के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी जी महाराज है।इसका केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है इस अखाड़े की अन्य शाखाएं प्रयाग ,ओमकारेश्वर ,काशी ,त्रयंबक उज्जैन व उदयपुर में है। यहाँ भस्म में लिपटे नागा सन्यासियों का दिव्य स्वरूप देखने को मिला। हर हर महादेव के नारों के साथ नागा संन्यासियों को स्नान करते हुए देखना एक अलग ही प्रकार का रोमांच से भर देने वाला एहसास है। नागा संन्यासियों को स्नान करने के बाद समय से मां गंगा से बाहर निकाल कर वापस अखाड़ों मैं भेजने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है

आपको बताते चलें कि इस अखाड़े की स्थापना सन 805 में हुई थी। आवाहन और अटल अखाड़े से जुड़े आठ संतो ने मिलकर इस अखाड़े की स्थापना की थी इस अखाड़े के इष्ट कपिल देव भगवान हैं इस अखाड़े में दो भाले हैं जिनका नाम भैरव प्रकाश व सूर्य प्रकाश है शाही स्नान की यात्रा में सबसे आगे अखाड़े के दो संत इन शक्ति स्वरूप भालो को लेकर चलते है। सबसे पहले स्नान भी इन भालो को ही कराया जाता है

महानिर्वाणी अखाड़े के बाद बैरागीयों से संबंधित तीन अखाड़े श्री निर्वाणी अणि, श्री दिगंबर अणि वह श्री निर्मोही अणि अखाड़ा हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड पर शाही स्नान करने के लिए पहुंचा। श्री निर्वाणी अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्री महंत धर्मदास जी महाराज, श्री दिगंबर अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्री महंत कृष्ण दास नगरिया, श्री निर्मोही अणि अखाड़ा के अध्यक्ष श्री महंत राजेंद्र दास है।

इस बार अखाड़ों के घाट आने का क्रम पिछली बार से अलग है पिछली बार सबसे पीछे चल रहे अखाड़े को इस बार सबसे आगे स्थान दिया गया एवं इसी प्रकार से क्रम को बदला गया है बैरागी अखाड़ों में कई सारे उप संप्रदाय भी हैं जैसे कि चतुर संप्रदाय निंबार्क संप्रदाय आदि
इन्हीं अखाड़ों को बैरागी अखाड़े के नाम से भी जाना जाता है।जय श्री राम के नारे लगाते हुए नागा सन्यासियों ने घाट पर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर दिया। कई नागा सन्यासी पारम्परिक शस्त्र जैसे तलवार व फरसों के साथ भी नज़र आये।

शाही स्नान के दिन हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड घाट पर स्नान के तीसरे क्रम में श्री महानिर्वाणी अखाड़ा पहुंचा। अखाड़े के पहुंचने से पहले घाटों की पूर्ण रूप से साफ सफाई करवाई गई महानिर्वाणी अखाड़ा शैव संप्रदाय का अखाड़ा है।इस अखाड़े के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी जी महाराज है।इसका केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है इस अखाड़े की अन्य शाखाएं प्रयाग ,ओमकारेश्वर ,काशी ,त्रयंबक उज्जैन व उदयपुर में है। यहाँ भस्म में लिपटे नागा सन्यासियों का दिव्य स्वरूप देखने को मिला। हर हर महादेव के नारों के साथ नागा संन्यासियों को स्नान करते हुए देखना एक अलग ही प्रकार का रोमांच से भर देने वाला एहसास है। नागा संन्यासियों को स्नान करने के बाद समय से मां गंगा से बाहर निकाल कर वापस अखाड़ों मैं भेजने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है

महानिर्वाणी अखाड़े के बाद बैरागीयों से संबंधित तीन अखाड़े श्री निर्वाणी अणि, श्री दिगंबर अणि वह श्री निर्मोही अणि अखाड़ा हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड पर शाही स्नान करने के लिए पहुंचा। श्री निर्वाणी अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्री महंत धर्मदास जी महाराज, श्री दिगंबर अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्री महंत कृष्ण दास नगरिया, श्री निर्मोही अणि अखाड़ा के अध्यक्ष श्री महंत राजेंद्र दास है।

इस बार अखाड़ों के घाट आने का क्रम पिछली बार से अलग है पिछली बार सबसे पीछे चल रहे अखाड़े को इस बार सबसे आगे स्थान दिया गया एवं इसी प्रकार से क्रम को बदला गया है बैरागी अखाड़ों में कई सारे उप संप्रदाय भी हैं जैसे कि चतुर संप्रदाय निंबार्क संप्रदाय आदि ,इन्हीं अखाड़ों को बैरागी अखाड़े के नाम से भी जाना जाता है।जय श्री राम के नारे लगाते हुए नागा सन्यासियों ने घाट पर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर दिया। कई नागा सन्यासी पारम्परिक शस्त्र जैसे तलवार व फरसों के साथ भी नज़र आये।

बैरागी अखाड़ा वही अखाड़ा है जो शुरुआत है मेला प्रशासन के व्यवस्थाओं से कुछ नाराज चल रहा था बैरागीयों के तीनों अखाड़ों के स्नान करने के बाद उदासीन संप्रदाय से संबंधित श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा शाही स्नान करने के लिए हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड पर पहुंचा।
श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा वही अखाड़ा है जो पिछली बार मेला प्रशासन की व्यवस्थाओं से नाराज होकर धरने पर बैठ गया था अखाड़े ने मेला प्रशासन पर यह आरोप लगाया था की बैरागी अखाड़े के नागा संन्यासियों को निर्धारित समय से ज्यादा देर तक स्नान करने दिया गया जिस कारण उन्हें स्नान करने में देरी हुई व कड़ी धूप में इंतजार करना पड़ा

ब्रह्म चिंतन में लीन उदासीन शैव और वैष्णव से पृथक होते हुए भी इन दोनों के बीच की कड़ी माना जाता है यह भक्ति ज्ञान के समुच्चय सिद्धांत को लेकर चलता है। उदासीन का अर्थ ब्रह्म चिंतन में लीन होता है। प्रारंभ में एक ही उदासीन अखाड़ा था बाद में इसमें नया उदासीन अखाड़ा जुड़ा व सबसे बाद में निर्मल अखाड़ा जुड़ा। इनमें वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदायों की झलक मिलती हैं।

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