आज बैसाख शुक्ल पक्ष पंचमी तद्नुसार १७ मई को श्री काशी सुमेरु पीठ में भगवान् आदिगुरू शंकराचार्य का प्राकट्योत्सव मनाया गया | कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रात: भगवान आदि गुरु शंकराचार्य के षोडशोपनचार पूजन से किया गया | तत्पश्चात् श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने उपस्थित सन्यासियों एवम् श्रद्धालुओं को अपना मार्गदर्शन प्रदान किया |
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि यदि आदिगुरु शंकराचार्य भगवान उस विषम कालखण्ड में नहीं होते, तो आज कोई सनातन धर्म का नाम लेने वाला नहीं होता | उनका जन्म केरल प्रान्त के कालाडी नामक गाँव मेँ श्री शिवगुरू नम्बूदरीपाद एवम् माता आर्याम्बा नामक दम्पत्ति के यहाँ हुआ था | उन्होंने मात्र ५ वर्ष की अल्पायु में ही सन्यास ग्रहण कर लिया, और पूरे देश में फैल रहे अवैदिक मतों का अपने तर्कों से खण्डन किया और सनातन धर्म की विजय पताका फहराई | उन्होंने प्रकाण्ड विद्वान पं० मण्डन मिश्र, उनकी महान विदुषी पत्नी उभय भारती जी को शास्त्रार्थ में पराजित किया | इतना ही नहीं, अपितु भगवान आदि गुरू शंकराचार्य जी का काशी के मणिकर्णिका घाट पर चाण्डाल वेषधारी भगवान शिव एवम् श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर में ब्यास रूपधारी भगवान श्री विष्णु जी से भी शास्त्रार्थ हुआ था |
भगवान आदिगुरू शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म के संरक्षण एवम् सम्बर्धन हेतु पूरे भारत में ७ पीठों की स्थापना की और उनके संचालन हेतु ब्यवस्था दी, जिसके अनुसार भारत के पश्चिमी भाग में स्थित पश्चिमाम्नाय शारदा मठ के आचार्य हेतु तीर्थ एवम् आश्रम नामा सन्यासी , उत्तराम्नाय ज्योंतिष पीठ के लिए आचार्य हेतु गिरि,पर्वत एवम् सागर नामा सन्यासी, पूर्वाम्नाय गोबर्धन पीठ के लिए आचार्य हेतु वन एवम् अरण्य नामा सन्यासी, दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी पीठ के लिए आचार्य हेतु सरस्वती, भारती एवम् पुरी नामधारी सन्यासी का नियम सुनिश्चित किया है | पाँचवीं पीठ ऊर्ध्वाम्नाय श्री काशी सुमेरु पीठ की स्थापना काशी में की और ब्यवस्था दी कि यहाँ का आचार्य वेदांग का उद्भट् विद्वान होगा, जो यह सुनिश्चत करेगा कि अन्य पीठ निरंकुश न होने पायें और नियम विरुद्घ कार्यों में न लिप्त होने पायें | इसी प्रकार छठवीं पीठ की स्थापना तमिलनाडु एवम् सातवीं पीठ की स्थापना कश्मीर में आदिगुरू शंकराचार्य भगवान ने की एवम् उनके लिए भी नियम निर्धारित किए हैं |
पूज्य शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि आज भी सनातन धर्म पर जिस तरह चतुर्दिक आक्रमण हो रहा है, उसमें भगवान आदि शंकर द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर चलकर ही सनातन धर्म को संरक्षित एवम् सम्बर्धित किया जा सकता है | इस अवसर पर स्वामी अखण्डानन्द तीर्थ, कोतवाल स्वामी रणछोड़ आश्रम, स्वामी श्यामदेव आश्रम, ब्रह्मचारी स्वामी बृजभूषणानन्द, स्वामी केदारानन्द तीर्थ, स्वामी जीतेन्द्रानन्द तीर्थ, स्वामी जगदेवानन्द तीर्थ, स्वामी राधेश्याम आश्रम, स्वामी बाबू आश्रम सहित अन्य सन्यासी एवम् श्रद्धालु उपस्तिथ थे | कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी स्वामी बृजभूषणानन्द जी महाराज ने किया |